सुमित्रानंदन पंत का जीवन परिचय 2023: Sumitranandan Pant ka Jivan Parichay in Hindi
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सुमित्रानंदन पंत का जीवन परिचय (Sumitranandan Pant ka Jivan Parichay): सुमित्रानंदन पंत का जीवन परिचय अत्यंत महत्वपूर्ण प्रश्न है जो अक्सर विभिन्न कक्षाओं और परीक्षाओं में पूछा जाता है। सुमित्रानंदन पंत, भारतीय साहित्य के क्षेत्र में एक महान व्यक्तित्व, कविता और गद्य के इतिहास में एक अमिट नाम है। 1900 में जन्मे, सुमित्रानंदन पंत ने अपनी काव्य रचनाओं द्वारा हिंदी साहित्य के क्षेत्र में जान फूंक दी। गहन दार्शनिक आधार और कल्पनाशील विशेषता वाले पंत के छंदों ने पाठकों के दिलों को मंत्रमुग्ध कर दिया और आलोचनात्मक प्रशंसा भी प्राप्त की। उनकी साहित्यिक यात्रा आत्मबोध और सामाजिक उत्थान की यात्रा थी, क्योंकि उन्होंने प्रकृति, आध्यात्मिकता और मानवीय भावनाओं के विषयों को अपने रचनाओं में सहजता से पिरोया था। साहित्य अकादमी पुरस्कार और ज्ञानपीठ पुरस्कार सहित कई अन्य प्रतिष्ठित पुरस्कारों के विजेता, हिंदी साहित्य में पंत का योगदान उनकी स्थायी विरासत का एक प्रमाण है, जो लेखकों और पाठकों की पीढ़ियों को समान रूप से प्रेरित करता रहता है।
आज हम सुमित्रानंदन पंत का जीवन परिचय लिखेंगे। हमारा प्रयास है कि विद्यार्थी छायावादी कवि सुमित्रानंदन पंत के जीवन और उनकी कृतियों के बारे में जाने और उनसे प्रेरित हों। हम आपके बहुत से प्रश्नों का उत्तर देने को कोशिश इस सुमित्रानंदन पंत की जीवनी के माध्यम से करेंगे जैसे, सुमित्रानंदन पंत की प्रमुख रचनाएं कौन कौन सी है? सुमित्रानंदन पंत की पहली कविता कौन सी है? सुमित्रानंदन पंत का उपनाम क्या है? सुमित्रानंदन पंत की प्रमुख कृतियाँ? आदि। तो आइये शुरू करते हैं, सुमित्रानंदन पंत का जीवन परिचय (Sumitranandan Pant ka Jivan Parichay)..
सुमित्रानंदन पंत का जीवन परिचय (Sumitranandan Pant ka Jivan Parichay in Hindi)
सुमित्रानंदन पंत का जीवन परिचय –
हिंदी साहित्य का भारतीय इतिहास में बहुत महत्वपूर्ण योगदान रहा है। भारत में ऐसे कई लेखक और कवि हुए हैं जिन्होंने अपनी लेखनी, अपनी रचनाओं और अपने लेखों के माध्यम से समाज को बेहतर बनाया। जयशंकर प्रसाद, महादेवी वर्मा, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला और अन्य लेखकों की रचनाओं की तरह ही सुमित्रानंदन पंत ने हिंदी साहित्य में महान योगदान दिया। सुमित्रानंदन पंत के नाम के बिना हिंदी साहित्य की कल्पना नहीं की जा सकती।
सुमित्रानंदन पंत का जन्म बागेश्वर ज़िले के कौसानी गांव में 20 मई, सन 1900 ई॰ को हुआ। जन्म के कुछ देर बाद ही उनकी माँ का निधन हो गया। उनका पालन पोषण, उनकी दादी ने किया। सुमित्रानंदन पंत का बचपन का नाम गुसाईं दत्त था। उनका बचपन कौसानी गाँव में बीता उसके बाद उन्होंने अल्मोडा और फिर बनारस के ‘क्वींस’ कॉलेज में उच्च शिक्षा प्राप्त की। उन्हे अपना बचपन का नाम गुसाईं दत्त पसंद नहीं था अतः उन्होंने इसे बदलकर अपना नाम सुमित्रानंदन पंत रख लिया था। मात्र 16 वर्ष की आयु में,वर्ष 1916 में इन्होंने ‘गिरजे का घंटा’ नामक सर्वप्रथम रचना लिखी। पंत का, काशी में सरोजिनी नायडू और रवीन्द्रनाथ टैगोर की रोमांटिक और अंग्रेजी कविता से परिचय हुआ, यहीं उन्होंने एक कविता प्रतियोगिता में भाग लिया और उन्हें काफी प्रशंसा मिली। उनकी रचनाएँ “सरस्वती पत्रिका” में प्रकाशित होने के बाद साहित्य प्रेमियों के दिलों पर छा गईं। 1950 में वे ‘ऑल इंडिया रेडियो’ के सलाहकार बन गए और 1957 तक सीधे रेडियो से जुड़े रहे। सुमित्रानंदन पंत प्रमुख छायावादी रचनाकारों में से एक थे। 28 दिसंबर, 1977 को भारतीय हिंदी साहित्य का यह सुकुमार कवि पंचतत्व में विलीन हो गया।
सुमित्रानंदन पंत का साहित्यिक परिचय –
सुमित्रानंदन पंत का बचपन कौसानी के सुरम्य वातावरण में बीता। प्रकृति का सुमित्रानंदन पर गहरा प्रभाव पड़ा और उन्होंने प्रकृति के बीच रहकर अपनी काव्य-साधना भी की। इसीलिए उनके काव्य में प्रकृति वर्णन, सौन्दर्य प्रेम तथा कोमल कल्पना प्रमुखता से मिलती है। वर्ष 1916 में सुमित्रानंदन पंत ने ‘गिरजे का घंटा’ नामक अपनी पहली रचना लिखी। इलाहाबाद के ‘म्योर सेन्ट्रल कॉलेज’ में प्रवेश लेने के बाद उनकी साहित्यिक रुचि और भी अधिक विकसित हो गई। वर्ष 1920 में उनकी रचनाएँ ‘उच्छवास’ और ‘ग्रंथी’ में प्रकाशित हुईं। इसके बाद वर्ष 1927 में उनके ‘वीणा’ और ‘पल्लव’ नामक दो काव्य संग्रह प्रकाशित हुए। उन्होंने ‘रूपाभ’ नामक प्रगतिशील विचारों वाले पत्र का संपादन भी किया। वर्ष 1942 में वे महर्षि अरविन्द घोष के संपर्क में आये। सुमित्रानंदन पंत को ‘कला और बूढ़ा चांद’ पर ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’, ‘लोकायतन’ पर ‘सोवियत भूमि पुरस्कार’ और ‘चिदंबरा’ पर भारतीय ‘ज्ञानपीठ’ पुरस्कार मिला। भारत सरकार ने पंत को ‘पद्म भूषण’ की उपाधि से अलंकृत किया। अपनी रचनाओं में प्रकृति-वर्णन की सुन्दर छवि दिखाने के कारण पंत जी को हिन्दी साहित्य का “वर्डसवर्थ” भी कहा जाता है। कवीन्द्र रवीन्द्र, स्वामी विवेकानन्द और अरविन्द दर्शन का भी पन्त के साहित्य पर पर्याप्त प्रभाव पड़ा है, अत: उनकी बाद की रचनाओं में अध्यात्मवाद और मानवतावाद का दर्शन मिलता है। निःसंदेह सुमित्रानंदन पंत छायावादी काव्य के चार प्रमुख स्तंभों में से एक हैं; उनकी कल्पनाशक्ति ऊंची, भावना कोमल और अभिव्यक्ति प्रभावशाली होती है। वह काव्य जगत में मृदुभाषी एवं सौम्य कवि के रूप में प्रसिद्ध हैं। इस दृष्टि से पंत जी का हिन्दी साहित्य में सर्वोपरि स्थान है।
उनकी काव्य चेतना का विकास प्रयाग में हुआ, लेकिन उन्होंने छोटी उम्र से ही कविताएँ लिखना शुरू कर दिया था। 1916 से 1977 तक लगभग 60 वर्षों की अवधि में लिखी गयी, उनकी काव्य यात्रा को तीन चरणों में बांटा जा सकता है। सन 1916-35 का पहला चरण छायावादी काव्य का था, जिसमें ‘वीणा’, ‘ग्रंथी’, ‘पल्लव’, ‘गुंजन’ और ‘ज्योत्सना’ संग्रह प्रकाशित हुए। छायावादी रचनात्मकता का सर्वोत्तम उदाहरण “पल्लव” संग्रह उनकी कला का सर्वोत्तम उदाहरण माना जाता है। मार्क्स और फ्रायड के प्रभाव में दूसरा चरण प्रगतिशील कविता का है, जहां वह सौंदर्य-चेतना से आगे बढ़कर आम आदमी को समझने की कोशिश करती है। इसी समय उनकी “युगांत”, “गुण-वाणी” और “ग्राम्या” पुस्तकें प्रकाशित हुईं। तीसरी धारा अध्यात्मवाद पर आधारित है जब वे अरविन्द-दर्शन से प्रभावित थे। वह इस चरण में आध्यात्मिक भावलोक की ओर बढ़ता है, जिसमें स्वर्ण-धूल, अतिमा, रजत शिखर और लोकायतन शामिल हैं।
सुमित्रानंदन पंत का संक्षिप्त जीवन परिचय (Biography of Sumitranandan Pant in Short)
प्रचलित नाम | सुमित्रानंदन पंत |
वास्तविक नाम | गोसाई दत्त |
जन्म | 20 मई 1900, कौसानी, उत्तराखंड |
मृत्यु | 28 दिसम्बर 1977, प्रयागराज, उत्तरप्रदेश |
पुरस्कार | पद्म भूषण (1961), ज्ञानपीठ पुरस्कार (1969), साहित्य अकैडमी पुरस्कार (1960) |
कविताएँ | सन्ध्या, तितली, ताज, मानव, बापू के प्रति, अँधियाली घाटी में, मिट्टी का गहरा अंधकार, ग्राम श्री आदि |
प्रसिद्धि का कारण | लेखक, छायावादी कवि |
माता – पिता | सरस्वती देवी – गंगा दत्त पंत |
भाषा ज्ञान | संस्कृत, अंग्रेजी, बांग्ला और हिंदी |
प्रारंभिक शिक्षा | कौसानी गांव |
उच्च शिक्षा | वाराणसी और प्रयागराज |
शैली | गीतात्मक |
मुख्य कृतियां | पल्लव, पीतांबरा एवं सत्यकाम |
भाषा शैली
सुमित्रानंदन पंत का लेखन अत्यधिक सुंदर और मधुर है। उन्होंने बांगला और अंग्रेजी भाषा के प्रभाव से प्रेरित होकर गीतात्मक शैली को अपनाया। उनकी शैली की प्रमुख विशेषताएं सरलता, मधुरता, चित्रात्मकता, कोमलता और संगीतात्मकता हैं।
सुमित्रानंदन पंत की कृतियां और रचनाएं (Sumitranandan Pant ki Kritiyaan aur Rachanaen)
सुमित्रानंदन पंत जब सात वर्ष की आयु में थे, और वे अभी चौथी कक्षा में पढ़ रहे थे, उस समय उन्होंने कविता लिखना शुरू कर दिया था। लगभग 1918 के आसपास तक, उन्हें हिंदी के नवाचारी कवि के रूप में पहचाना जाने लगा था। उनकी इस युग की कविताएं वीणा की तरह संकलित हैं।
पंत जी की कृतियां निम्नलिखित हैं –
काव्य – वीणा, ग्रंथि, पल्लव, गुंजन, स्वर्ण किरण, युगांत, युगवाणी, लोकायतन, चिदंबरा, आदि।
नाटक – रजतरश्मि, शिल्पी, ज्योत्सना आदि।
उपन्यास – हार
कहानियाँ – पाँच कहानियाँ (1938)
आत्मकथात्मक संस्मरण – साठ वर्ष: एक रेखांकन (1963)
सुमित्रानंदन पंत के महाकाव्य
“लोकायतन” कवि सुमित्रानन्दन पन्त का एक महाकाव्य है। कवि की विचारधारा और लोक-जीवन के प्रति उनकी प्रतिबद्धता इस कृति में प्रकट होती है। इस काव्य के लिए सुमित्रानन्दन पंत को ‘सोवियत रूस’ और उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा सम्मानित किया गया है। पंत जी की अपने माता-पिता के प्रति गहरी श्रद्धा थी, और उन्होंने अपने दो महाकाव्यों के माध्यम से इस भावना को व्यक्त किया है। पहले महाकाव्य ‘लोकायतन’ को उन्होंने अपने पूज्य पिता को समर्पित किया और दूसरे महाकाव्य “सत्यकाम”, को अपनी स्नेहमयी माता को समर्पित किया है। इन महाकाव्यों में वे अपनी माता सरस्वती देवी की यादों को संजोकर उन्हें स्मरण करते हैं, और ‘सत्यकाम’ नामक महाकाव्य में उनके विशेष शब्द हैं –
मुझे छोड़ अनगढ़ जग में तुम हुई अगोचर,
भाव-देह धर लौटीं माँ की ममता से भर !
वीणा ले कर में, शोभित प्रेरणा-हंस पर,
साध चेतना-तंत्रि रसौ वै सः झंकृत कर
खोल हृदय में भावी के सौन्दर्य दिगंतर !
सुमित्रानंदन पंत के पुरस्कार व उपाधि
हिंदी साहित्य में सुमित्रानंदन पंत की सेवा के लिए उन्हें पद्म भूषण (1961), ज्ञानपीठ (1968), साहित्य अकादमी पुरस्कार और सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उन्हें हिंदी साहित्य का “शिल्पी” भी कहा जाता है। छायावाद पर आधारित उनके प्रकृति चित्रण, सौंदर्य और मनोरम काल्पनिक चित्रण के कारण सुमित्रानंदन पंत को “सुकुमार” कवि भी कहा जाता है।
सुमित्रानंदन पंत संग्रहालय
उत्तराखंड में कुमाऊं की पहाड़ियों के कौसानी गांव में उनका घर, जहां उन्होंने अपना बचपन बिताया, अब ‘सुमित्रा नंदन पंत साहित्यिक गैलरी’ नामक एक संग्रहालय बन गया है। इस संग्रहालय में सुमित्रानंदन पंत के कपड़े, चश्मा, कलम आदि निजी सामान सुरक्षित रखा गया है। उन्हें प्राप्त ज्ञानपीठ पुरस्कार का प्रशस्ति पत्र, हिन्दी साहित्य सम्मेलन द्वारा प्राप्त साहित्य वाचस्पति का प्रशस्ति पत्र भी संग्रहालय में मौजूद है। इसके साथ ही उनकी लोकायतन, आस्था आदि की पांडुलिपियां भी सुरक्षित रखी गई हैं। कालाकांकर के कुँवर सुरेश सिंह और हरिवंश राय बच्चन के साथ उनके पत्र-व्यवहार की प्रतियाँ भी यहाँ मौजूद हैं। संग्रहालय में उनकी स्मृति में हर वर्ष पंत व्याख्यानमाला का आयोजन किया जाता है। यहां से ‘सुमित्रानंदन पंत का व्यक्तित्व एवं कृतित्व’ नामक पुस्तक भी प्रकाशित हुई है। प्रयागराज (इलाहाबाद) शहर में हाथी पार्क का नाम उनके नाम पर ‘सुमित्रानंदन पंत बाल उद्यान’ रखा गया है।