स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय | स्वामी विवेकानंद जी की जीवनी | Swami Vivekanand ka Jivan Parichay | Biography of Swami Vivekananda in Hindi | Vivekanand Jeevani Hindi Me
स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय (Swami Vivekanand ka Jivan Parichay): स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय सभी को जानने की आवश्यकता है क्योंकि उनकी जीवनी सभी के लिए एक प्रेरणा का स्रोत है और स्वामी विवेकानंद के सिद्धांत, विचार और योगदान आज भी हमारे आध्यात्मिक और समाजिक जीवन को प्रभावित कर रहे हैं। स्वामी विवेकानंद ने धर्म की महत्व को समझाया और सामाजिक सेवा को धर्म का एक हिस्सा माना। उन्होंने सिखाया कि सच्चे धर्म का अर्थ है – “दूसरों की सेवा करना”। स्वामी विवेकानंद ने ध्यान और योग के माध्यम से आत्मा के आध्यात्मिक विकास बताया। उनके अनुसार, योग के माध्यम से हम अपने मानसिक स्थिति को सुधार सकते हैं और आत्मा के अद्वितीयता को महसूस कर सकते हैं। स्वामी विवेकानंद ने विश्व में भारतीय संस्कृति, धर्म, और तत्त्वज्ञान का प्रचार प्रसार किया। उन्होंने भारतीय धर्म और दार्शनिक विचारों को पश्चिमी विश्व में प्रस्तुत किया और उन्हें समझाने का प्रयास किया। आज हम Curious Kids Kingdom पर स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय लिखेंगे। विवेकानंद की जीवनी अक्सर लिखने को पूछा जाता है। हमारा प्रयास है कि विद्यार्थी स्वामी विवेकानन्द के जीवन से प्रेरित हों और उनके विचार और सिद्धांतों को अपने जीवन में भी अपनाने का प्रयास करें। हम आपके बहुत से प्रश्नों का उत्तर देने को कोशिश इस जीवनी के माध्यम से करेंगे जैसे कि स्वामी विवेकानंद जी का जन्म कब हुआ? स्वामी विवेकानंद के कार्य? स्वामी विवेकानंद के सिद्धांत? स्वामी विवेकानंद के गुरु का नाम? स्वामी विवेकानंद जी की मृत्यु कैसे हुई? आदि। तो आइये शुरू करते हैं, स्वामी विवेकानन्द का जीवन परिचय (Biography of Swami Vivekanand in Hindi)
स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय (Swami Vivekanand ki Jeevani):
स्वामी विवेकानंद का बचपन
स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को कोलकाता के एक कायस्थ परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम श्री विश्वनाथ दत्त और माता का नाम श्रीमती भुवनेश्वरी देवी था। उनके बचपन का घर का नाम वीरेश्वर था। स्वामी विवेकानन्द का वास्तविक नाम नरेंद्र नाथ दत्त था। स्वामी विवेकानंद के पिता कलकत्ता उच्च न्यायालय के प्रसिद्ध वकील थे। वह पश्चिमी सभ्यता में रूचि रखते थे और चाहते थे कि उनका पुत्र भी अंग्रेजी पढ़कर पश्चिमी सभ्यता की राह पर चले। विवेकानंद की माता जी धार्मिक विचारों वाली महिला थीं। उनका अधिकांश समय भगवान शिव की आराधना में व्यतीत होता था। वह विवेकानंद को बाल्यकाल में रामायण और महाभारत की कहानियां सुनाया करती थी। जिससे उनकी आध्यात्म में रूचि बढ़ने लगी। कहानियां सुनते समय उनका मन हर्षोल्लास से भर उठता था। रामायण सुनते सुनते बालक नरेंद्र का ह्रदय भक्ति रस से भर जाता था। वे अक्सर अपने घर में ही ध्यान मग्न हो जाया करते थे। नरेंद्र बचपन से ही बहुत तीव्र बुद्धि के बालक थे और उनके ह्रदय में ईश्वर को पाने की लालसा भी प्रबल थी।
स्वामी विवेकानंद की शिक्षा
सन् 1871 में, आठ वर्ष की उम्र में, नरेन्द्रनाथ ने ईश्वर चंद्र विद्यासागर के मेट्रोपोलिटन संस्थान में दाखिला लिया और शिक्षा प्रारम्भ की। सन् 1877 में उनका परिवार रायपुर चला गया। 1879 में, कलकत्ता में अपने परिवार की वापसी के बाद, विवेकानंद एकमात्र छात्र थे जिन्होंने प्रेसीडेंसी कॉलेज प्रवेश परीक्षा में प्रथम डिवीजन अंक प्राप्त किये। नरेंद्र नाथ को कला, साहित्य, दर्शन, धर्म, इतिहास और सामाजिक विज्ञान जैसे विषयों को पढ़ने में रूचि थी। स्वामी विवेकानंद ने वेदों, उपनिषदों, भगवद गीता, महाभारत, पुराणों और कई अन्य हिंदू धर्म ग्रंथों का भी गहरा अध्ययन किया। नरेंद्र भारतीय शास्त्रीय संगीत में प्रशिक्षित थे और नियमित रूप से खेल और व्यायाम करते थे। नरेंद्र ने जनरल असेंबली इंस्टीट्यूशन (अब स्कॉटिश चर्च कॉलेज) में विस्तारपूर्वक पश्चिमी तर्क, पश्चिमी दर्शन और यूरोपीय इतिहास का अध्ययन किया। 1881 में उन्होंने ललित कला की परीक्षा उत्तीर्ण की और 1884 में कला स्नातक की उपाधि प्राप्त की।
नरेंद्र नाथ ने डेविड ह्यूम, इमैनुएल कांट, जोहान गोटलिब फिच्टे, बारूक स्पिनोज़ा, जॉर्ज डब्ल्यू एच हेगेल, आर्थर शोपेनहावर, ऑगस्टे कॉम्टे और जॉन स्टुअर्ट के लेखों का गहराई से अध्ययन किया। हर्बर्ट स्पेंसर के विकासवाद का उन पर बहुत प्रभाव पड़ा। उन्होंने पश्चिमी दार्शनिकों के साथ-साथ संस्कृत और बंगाली साहित्य को भी पढ़ा।
नरेंद्र नाथ की कुशाग्र बुद्धि और योग्यता से प्रभावित होकर, विलियम हेस्टी (तत्कालीन महासभा संस्थान के प्रिंसिपल) ने लिखा, “नरेंद्र वास्तव में एक प्रतिभाशाली व्यक्ति हैं। मैंने कई स्थानों की यात्रा की है, कई छात्रों से मिला हूँ, लेकिन जर्मन विश्वविद्यालयों के दर्शनशास्त्र के छात्रों में भी मैंने उनके (विवेकानंद) जैसी प्रतिभा नहीं देखी।”
स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय संक्षिप्त में (Swami Vivekanand Biography in Short)
वास्तविक नाम | नरेन्द्रनाथ दत्त |
सन्यास के बाद का नाम | स्वामी विवेकानंद |
माता का नाम | भुवनेश्वरी देवी |
पिता का नाम | विश्वनाथ दत्त |
भाई – बहन | 9 |
बचपन का नाम | नरेन्द्र और नरेन |
जन्म तिथि | 12 जनवरी, 1863 |
जन्म स्थान | कलकत्ता, भारत |
मृत्यु | 4 जुलाई, 1902 |
मृत्यु स्थान | बेलूर, पश्चिम बंगाल, भारत |
गुरु का नाम | रामकृष्ण परमहंस |
संस्थापक | रामकृष्ण मिशन और बेलूर मठ |
साहित्यिक कार्य | राजयोग, कर्मयोग, भक्तियोग, मेरे गुरु |
स्वामी विवेकानंद का आध्यात्मिक जीवन
नरेंद्र नाथ का स्नातक शिक्षा के दौरान ही वेदांत, अध्यात्म और हिन्दू धर्म के प्रति रुझान बढ़ रहा था। अपने मन में उठने वाली उनके जिज्ञासाओं के समाधान के लिए वह अनेक लोगो से मिले, परन्तु उनका मन चित्त शांत नहीं हुआ। विद्यार्थी जीवन में वह ब्रह्म समाज के नेता महर्षि देवेंद्र नाथ ठाकुर के संपर्क में आए। स्वामी विवेकानंद जी की जिज्ञासा को शांत करने के लिए उन्होंने नरेंद्र को रामकृष्ण परमहंस के पास जाने की सलाह दी। नरेंद्र नाथ ने 25 वर्ष की उम्र में ही अपना घर और परिवार को छोड़कर सन्यासी बनने का निश्चय किया। स्वामी रामकृष्ण परमहंस दक्षिणेश्वर काली मंदिर के पुजारी थे। राम कृष्ण परमहंस ने नरेंद्र को देखते ही पहचान लिया और कहा कि, “जिस शिष्य की मैं प्रतीक्षा कर रहा था वह तुम हो।” स्वामी रामकिशन परमहंस की कृपा से नरेंद्र को आत्मज्ञान प्राप्त हुआ और वह परमहंस जी के प्रमुख शिष्य हो गए। संन्यास की दीक्षा लेने के बाद नरेंद्र नाथ का नाम स्वामी विवेकानंद हो गया।
स्वामी विवेकानंद जी और श्री रामकृष्ण परमहंस
स्वामी विवेकानंद के गुरु का नाम श्री रामकृष्ण परमहंस था। श्री रामकृष्ण परमहंस भारत के एक महान संत, आध्यात्मिक गुरु एवं विचारक थे। वह दक्षिणेश्वर काली मंदिर के पुजारी थे। विवेकानंद की मुलाकात उनसे वही हुई। परमहंस के विचारों से प्रभावित होकर विवेकानंद उनके शिष्य बन गए। विवेकानंद ने श्री रामकृष्ण परमहंस से धर्म और वेदों का ज्ञान हासिल किया था। कहा जाता है कि एक बार विवेकानंद जी ने श्री रामकृष्ण परमहंस से एक सवाल करते हुए पूछा था कि, “क्या आपने भगवान को देखा है?” दरअसल विवेकानंद से लोग अक्सर इस सवाल को किया करते थे और उनके पास इस सवाल का जवाब नहीं हुआ करता था। इसलिए जब वो श्री रामकृष्ण परमहंस से मिले तो उन्होंने श्री रामकृष्ण परमहंस से यही सवाल किया था। इस सवाल के जवाब में श्री रामकृष्ण परमहंस ने विवेकानंद जी से कहा, हां मैंने भगवान को देखा है। मैं आपके अंदर भगवान को देखता हूं। भगवान हर किसी के अंदर स्थापित हैं। श्री रामकृष्ण परमहंस का ये जवाब सुनकर स्वामी विवेकानंद के मन को संतुष्टि मिली और इस तरह से उनका झुकाव रामकृष्ण परमहंस की ओर बढ़ने लगा और विवेकानंद जी ने श्री रामकृष्ण परमहंस के मुख्य शिष्य बन गए।
रामकृष्ण परमहंस जीवन के अंतिम दिनों में समाधि की स्थिति में रहने लगे। अत: उनका शरीर शिथिल होने लगा था। डाक्टरों ने कैंसर बताकर समाधि लेने और वार्तालाप से मना किया था। एक बार विवेकानंद अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस के पास जाकर उनसे हिमालय के किसी एकान्त स्थान पर जाकर, तपस्या करने की आज्ञा मांगी तो रामकृष्ण परमहंस ने कहा – वत्स हमारे आसपास के क्षेत्र के लोग भूख से तड़प रहे हैं, चारों ओर अज्ञान का अंधेरा छाया हुआ है। यहां लोग रोते-चिल्लाते रहें और तुम हिमालय की किसी गुफा में समाधि के आनन्द में निमग्न रहो। क्या तुम्हारी आत्मा ऐसा करना स्वीकार कर पाएगी? उन्होंने विवेकानंद को गरीबों की सेवा करने के लिए प्रेरित किया। गुरु की प्रेरणा से विवेकानन्द दरिद्र नारायण की सेवा में लग गये। चिकित्सा कराने से रोकने पर भी विवेकानन्द ने अपने गुरु का इलाज जारी रखा। चिकित्सा के वाबजूद रामकृष्ण परमहंस का स्वास्थ्य बिगड़ता रहा और सन् 1886 ई. में श्रावणी पूर्णिमा के अगले दिन प्रतिपदा को प्रातःकाल रामकृष्ण परमहंस ने देह त्याग दिया।
स्वामी विवेकानंद का भारत भ्रमण
16 अगस्त 1886 को अपने गुरु स्वामी रामकृष्ण परमहंस की मृत्यु के बाद, स्वामी विवेकानंद कुछ दिनों तक एकांतवास में समाधी में रहे। इसके बाद वह गरीबों की सेवा के लिए भारत भ्रमण पर निकले। पैदल यात्रा करते हुए स्वामी विवेकानन्द ने प्रयागराज, अयोध्या, बनारस, आगरा, वृन्दावन तथा कई अन्य स्थानों का भ्रमण किया। इस दौरान वे कई संतों, गरीबों, राजाओं और ब्राह्मणों के घर रहे। इस यात्रा के दौरान स्वामी विवेकानंद ने यह अनुभव किया कि कई अलग-अलग क्षेत्रों में जातिवाद और भेदभाव की भावना अत्यधिक है। जाति व्यवस्था को समाप्त करने के लिए उन्होंने अनेक प्रयास किये गये। 23 दिसंबर 1892 को वे भारत के अंतिम छोर कन्याकुमारी पहुंचे और तीन दिनों तक समाधि में रहे। फिर उनकी मुलाकात राजस्थान के आबू रोड में अपने गुरु भाइयों स्वामी ब्रह्मानंद और स्वामी तूर्यानंद से हुई। पूरे भारत में भ्रमण के दौरान स्वामी जी ने देश की गरीबी और पीड़ित लोगों को देखा और भारत को पूर्ण रूप से स्वतंत्र कराने और भारत के बारे में दुनिया के सोचने के तरीके को बदलने का निर्णय लिया।
स्वामी विवेकानंद की शिकागो,अमेरिका यात्रा
भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म के प्रचार प्रसार के लिए, विवेकानंद ने 31 मई 1893 को अपनी यात्रा शुरू की। उन्होंने जापान के कई शहरों जैसे नागासाकी, कोबे, योकोहामा, ओसाका, क्योटो और टोक्यो समेत का दौरा किया, तत्पश्चात चीन और कनाडा होते हुए स्वामी विवेकानंद अमेरिका के शिकागो पहुँचे। 11 सितंबर 1893 में शिकागो, अमेरीका में विश्व धर्म परिषद् का आयोजन हुआ था। स्वामी विवेकानन्द उसमें भारत के प्रतिनिधि के रूप में पहुँचे। स्वामी विवेकानन्द को सर्व धर्म परिषद् में बोलने का बहुत कम समय दिया गया था, परंतु स्वामी विवेकांनद द्वारा अपने भाषण के सम्बोधन में बोले गए ” मेरे अमेरिकी भाइयों और बहनों” ने सम्मलेन में बैठे विद्वानों पर ऐसा गहरा प्रभाव डाला कि स्वामी जी को बोलने की समय सीमा ही न रही। आर्ट इंस्टीट्यूट ऑफ शिकागो में पूरे दो मिनट तक तालियाँ गूंजती रही। स्वामी विवेकानंद ने अपने भाषण में भारत का परिचय विश्व गुरु के रूप में दिया और कहा कि “मैं एक ऐसे देश से हूं, जिसने इस धरती के सभी देशों और धर्मों के सताए लोगों को शरण में रखा है”। उस परिषद् में उनके विचार सुनकर सभी विद्वान चकित हो गये।
अमेरीका में उनका भव्य स्वागत हुआ। वहाँ उनके अनेक भक्त बन गए। तीन वर्ष विवेकानंद अमरीका में रहे और वहाँ के लोगों को भारतीय तत्वज्ञान की अद्भुत ज्योति प्रदान की। उनकी वक्तृत्व-शैली तथा ज्ञान को देखते हुए वहाँ के मीडिया ने उन्हें “साइक्लॉनिक हिन्दू” का नाम दिया। आध्यात्म-विद्या और भारतीय दर्शन के बिना विश्व अनाथ हो जायेगा” इस कथन में स्वामी विवेकानन्द का दृढ़ विश्वास था।
इसके बाद स्वामी विवेकानंद ने हार्वर्ड विश्वविद्यालय में संभाषण, न्यूयॉर्क में वेदान्त समिति की स्थापना, पेरिस में, ऑक्सफोर्ड में, लन्दन में, आदि अनेक जगहों पर सनातन धर्म और भारतीय संस्कृति से जुड़े व्याख्यान दिए।
रामकृष्ण मिशन की स्थापना
1 मई 1897 को स्वामी विवेकानंद जी ने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी। इस मिशन उद्देश्य नव भारत का निर्माण और अनेक अस्पताल, स्कूल और कॉलेजों का निर्माण था। रामकृष्ण मिशन के बाद विवेकानंद जी ने सन 1898 में बेलूर मठ (Belur math) की स्थापना की थी। इसके अलावा इन्होंने अन्य और दो मठों की स्थापना की थी।
स्वामी विवेकानंद के व्यक्तित्व का प्रभाव
स्वामी विवेकानंद का व्यक्तित्व इतना प्रभावशाली था कि वह ऐसे अनेक महान लोगो को प्रभावित कर गया जो स्वयं दूसरों को प्रभावित करने में पूर्णतया सक्षम थे। ऐसे महान व्यक्तियों में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, गुरुदेव रविंद्र नाथ टैगोर, अरबिंदो घोष, चक्रवर्ती राजगोपालाचारी, नेता जी सुभाष चंद्र बोस, भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू, जमशेदजी टाटा, लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक, वैज्ञानिक निकोला टेस्ला, एनी बेसेंट, वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अन्ना हजारे आदि शामिल हैं।
गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने एक बार कहा था, “यदि आप भारत को जानना चाहते हैं तो विवेकानन्द को पढ़िये। उनमें आप सब कुछ सकारात्मक ही पायेंगे, नकारात्मक कुछ भी नहीं।”
रोमां रोलां ने उनके बारे में कहा था कि, “उनके द्वितीय होने की कल्पना करना भी असम्भव है, वे जहाँ भी गये, सर्वप्रथम ही रहे।“
हिमालय में एक बार एक अनजान यात्री उन्हें देख ठिठक कर रुक गया और आश्चर्यपूर्वक चिल्ला उठा “शिव”, उसे विवेकानंद में शिव दिखाई दिए।
स्वामी विवेकानंद की साहित्य रचनाएँ
स्वामी विवेकानंद एक अच्छे चित्रकार, लेखक और गायक थे। यह कहना गलत नहीं होगा कि स्वामी विवेकानंद संपूर्ण कलाओं में निपुण थे। उनके द्वारा लिखे गए निबंध रामकृष्ण मठ और रामकृष्ण मिशन दोनों ही मैगजीन में छपे। उनकी भाषा पर बहुत अच्छी पकड़ थी। जिसके कारण उनके द्वारा दिए गए व्याख्यान, लेक्चर और भी अधिक प्रभावी और समझने में आसान होते थे।
स्वामी विवेकानंद की प्रमुख रचनाएं अथवा साहित्य निम्नलिखित थे:
- संगीत कल्पतरू,
- कर्मयोग,
- राजयोग (न्यूयॉर्क में दिए गए भाषणों के दौरान कही गई बातों का संकलन),
- भक्ति योग
- ज्ञान योग
- लेक्चर्स फ्रॉम कोलंबो टू अल्मोड़ा,
- बंगाली रचना – वर्तमान भारत
- माय मास्टर (न्यूयॉर्क की बेकर एंड टेलर कंपनी द्वारा)
- वेदांत फिलॉसफी, आदि
स्वामी विवेकानंद की मृत्यु
स्वामी विवेकानंद का स्वर्गवास, 4 जुलाई 1902 को बेलूर मठ में हुआ था। मृत्यु के समय उनकी आयु मात्र 39 साल की थी। इतनी कम आयु में भी विवेकानंद ने कई जन्मों का ज्ञान पूरे विश्व को दिया। जीवन के अन्तिम दिनों में उन्होंने शुक्ल यजुर्वेद की व्याख्या की और कहा कि “एक और विवेकानन्द चाहिये, यह समझाने के लिये कि इस विवेकानन्द ने अब तक क्या किया है।” बेलूर में गंगा तट पर उनकी अंत्येष्टि की गयी। इसी गंगा तट के दूसरी ओर उनके गुरु रामकृष्ण परमहंस का सोलह वर्ष पूर्व अन्तिम संस्कार हुआ था।
स्वामी विवेकानन्द के शिक्षा दर्शन के मूल सिद्धान्त
- शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जिससे बच्चे का शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक विकास हो सके।
- लड़के और लड़कियों दोनों को समान शिक्षा दी जानी चाहिए।
- पाठ्यक्रम में लौकिक एवं पारलौकिक दोनों विषयों को स्थान दिया जाना चाहिए।
- शिक्षक और छात्र के बीच का रिश्ता यथासंभव घनिष्ठ होना चाहिए।
- देश की आर्थिक उन्नति के लिए तकनीकी शिक्षा की व्यवस्था की जानी चाहिए।
- शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जो सीखने वाले को जीवन की चुनौतियों से संघर्ष करने की ताकत दे।
- शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जो बच्चे के चरित्र का निर्माण करे, मन, बुद्धि का विकास करे।
- धार्मिक शिक्षा किताबों के माध्यम से नहीं, आचरण और संस्कारों के माध्यम से दी जानी चाहिए।
- गुरु गृह में शिक्षा प्राप्त की जा सकती है।
- शिक्षा का सामान्य रूप से प्रचार एवं प्रसार किया जाना चाहिए।
स्वामी विवेकानंद के अनमोल वचन
- उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत। अर्थात उठो जागो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त नहीं हो जाता।
- चिंतन करो, चिंता नहीं, नए विचारों को जन्म दो।
- शक्ति जीवन है, निर्बलता मृत्यु है। विस्तार जीवन है, संकुचन मृत्यु है। प्रेम जीवन है, द्वेष मृत्यु है।
- विश्व एक विशाल व्यायामशाला है जहाँ हम खुद को मजबूत बनाने के लिए आते हैं।
- एक अच्छे चरित्र का निर्माण हजारो बार ठोकर खाने के बाद ही होता है।
- जब तक आप खुद पर विश्वास नहीं करते तब तक आप भगवान पर विश्वास नहीं कर सकते।
- खुद को कमजोर समझना सबसे बड़ा पाप है।
- सत्य को हजार तरीकों से बताया जा सकता है, फिर भी वह एक सत्य ही होगा।
- हम जो बोते हैं वो काटते हैं। हम स्वयं अपने भाग्य के निर्माता हैं।
- जो कुछ भी तुमको कमजोर बनाता है – शारीरिक, बौद्धिक या मानसिक उसे जहर की तरह त्याग दो।
विवेकानंद जी की जयंती (Birth Anniversay of Swami Vivekanand)
विवेकानंद जी की जयंती हर वर्ष 12 जनवरी को मनाई जाती है। विवेकानंद की जयंती भारत में राष्ट्रीय युवा दिवस (National youth day) के रूप में मनायी जाती है।