हिंदी व्याकरण में मात्रा क्या होती हैं? इनका क्या महत्त्व है?
हिंदी व्याकरण में “मात्रा” (Matra) स्वरों के साथ वर्णों के ऊपर या नीचे जोड़े जाने वाले चिह्न होते हैं। इन्हें वर्णों के साथ मिलाकर वर्ण-मात्रा कहते हैं। मात्राएँ वर्णों को पढ़ने और लिखने के नियमों को संघटित करती हैं और भाषा को सही ढंग से लिखने और उच्चारण करने में मदद करती हैं।
हिंदी वर्णमाला में स्वरों की पहचान मात्राओं से होती है। हिंदी में उपयोग होने वाले स्वर हैं: अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ, अं और अः। इन स्वरों के ऊपर या नीचे जुड़ी मात्राएँ वर्णों के उच्चारण और लिखने को समर्थन करती हैं।
मात्राओं का महत्त्व विभिन्न संदेशों को सही ढंग से संवाद करने में होता है। कई शब्द एक ही अक्षर या वर्ण के बदलाव से अर्थ में अंतर कर सकते हैं। मात्राओं के सही उपयोग से शब्दों के अर्थ का स्पष्टीकरण होता है और वाक्य का सही मतलब समझने में मदद मिलती है। इसलिए, मात्राओं का ज्ञान हिंदी भाषा में सही रूप से लिखने और समझने के लिए आवश्यक होता है।
उदाहरण के लिए, इसमें विभिन्न मात्राओं के साथ “म” ध्वनि वाले शब्द हैं:
“म” + “अ” = “म” (अ)
“म” + “आ” = “मा” (ा)
“म” + “इ” = “मि” (ि)
“म” + “ई” = “मी” (ी)
“म” + “उ” = “मु” (ु)
“म” + “ऊ” = “मू” (ू)
“म” + “ऋ ” = “मृ” (ृ)
“म” + “ए” = “मे” (े)
“म” + “ऐ” = “मै” (ै)
“म” + “ओ” = “मो” (ो)
“म” + “औ” = “मौ” (ौ)
“म” + “अं” = “मं” (ं)
“म” + “अः” = “मः” (ाः)
इस तरह, मात्राओं के साथ वर्णों को जोड़कर अलग-अलग शब्द बनते हैं जिनका अर्थ भिन्न होता है, जैसे कि म, मा, मि, मी, मु, मू, मृ, मे, मै, मो, मौ, मं, और मः।