15+ कबीर के प्रसिद्द दोहे हिंदी में अर्थ सहित (Kabir Das ke Dohe with Meaning in Hindi and English)
Kabir Das Popular Dohe with Meaning in Hindi and English | कबीर के प्रसिद्द दोहे हिंदी और अंग्रेजी में अर्थ सहित
ऐसी वाणी बोलिए, मन का आपा खोय |
औरन को शीतल करे, आपहु शीतल होय ||
इस दोहे के माध्यम से संत कबीर दास जी कहते हैं कि हमें हमेशा ऐसी भाषा बोलनी चाहिए जिसे सुनकर सामने वाले हो अच्छा लगे। जिसे सुनकर उनका मन शांत हो हो और स्वयं को भी सुख और शांति का अनुभव हो।
Aisi vaani boliye, man ka aapa khoy!
Auran ko sheetal kare, aaphu sheetal hoy!!
Through this couplet, Sant Kabir Das Ji says that we should always speak in such a manner that it pleases the listener. The words should calm their mind, bringing them peace and happiness, and in turn, provide us with a sense of comfort and tranquility.
गुरु गोविंद दोउ खड़े, काके लागूं पाँय ।
बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो मिलाय ॥
कबीर दास जी कहते हैं कि यदि गुरु और गोविंद अर्थात भगवान दोनों मेरे सामने खड़ें हो जाएँ तो मुझे किसका चरण स्पर्श पहले करना चाहिए? फिर वो कहते हैं की मैं पहले अपने गुरु के चरण स्पर्श करूँगा क्योंकि मेरे गुरु ने ही तो मुझे गोविन्द अर्थात भगवान से मिलाया है यानि मेरे गुरु ने ही मुझे बताया है की भगवान कौन हैं, उनका ज्ञान कराया है।
Guru Govind dou khade, kake lagu paay।
Balihari Guru aapne, Govind diyo milay।।
Kabir Das Ji says that if both the Guru and Govind (God) stand before me, whose feet should I touch first? He then says that I would first touch my Guru’s feet because it is my Guru who has led me to Govind, meaning my Guru has introduced me to God and imparted the knowledge of who God is.
निंदक नियरे राखिए, ऑंगन कुटी छवाय ।
बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय ॥
कबीर दास जी कहते हैं कि अपनी निंदा अर्थात आलोचना करने वाले व्यक्ति हो हमेशा अपने पास रखना चाहिए। जिस प्रकार साबुन और पानी से नहाकर हमारा शरीर स्वच्छ होता है उसी प्रकार ऐसे व्यक्ति हमें हमारी कमियां बताकर हमारा स्वभाव साफ़ करतें हैं यानि हमे अति आत्मविश्वास और अहंकार से बचाते हैं।
Nindak niyare rakhiye, aangan kuti chhavaay।
Bin paani, saabun bina, nirmal kare subhaay॥
Kabir Das says that one should always keep a person who criticizes them close. Just as our body is cleansed by bathing with soap and water, similarly, such a person helps cleanse our nature by pointing out our flaws. This prevents us from becoming overly self-confident and arrogant.
काल करे सो आज कर, आज करै सो अब |
पल में परलय होयगी, बहुरी करेगा कब ||
इस दोहे में संत कबीर दास जी बताते हैं कि हमें समय की कीमत पहचाननी चाहिए। हमे जो काम आने वाले कल करना हैं उसे आज ही कर लेना चहिये और जो काम आज करना उसे अभी इसी समय कर लेना चहिये। हमे क्या पता कि अगले ही पल प्रलय आ जाए तो अपना काम कब कर पाएंगे।
Kal kare so aaj kar, aaj kare so ab|
Pal mein pralaya hoyegi, bahuri karega kab||
In this couplet, Saint Kabir Das tells us that we should recognize the value of time. The work we have to do tomorrow should be done today, and the work we have to do today should be done right now. Who knows, the next moment might bring a catastrophe, and when will we be able to complete our tasks?
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय ।
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।।
कबीरदास के इस प्रसिद्ध दोहे में कहा है कि जब मैं किसी और व्यक्ति की बुराई खोजने चला तो मुझे ऐसा व्यक्ति कोई नहीं मिला। किंन्तु जब मैंने अपने अंतर्मन को देखा तो मुझे पता चला कि मैं ही सबसे बुरा हूँ, जो दूसरों की बुराई खोजता है। अतः हमे दूसरों की कमी निकालने से अच्छा अपनी अच्छाइयों पर ध्यान देना चाहिये।
Bura jo dekhan main chala, bura na miliya koy।
Jo dil khoja aapana, mujhse bura na koy।।
Kabir Das has said in this famous doha that when I went looking for the faults of others, I found none. However, when I looked within myself, I realized that I am the worst, as I am the one who searches for the faults of others. Therefore, instead of finding flaws in others, we should focus on our own virtues.
करता था सो क्यों किया, अब कर क्यों पछिताय।
बोया पेड़ बबूल का, आम कहाँ से खाय ॥
कबीर दास का यह प्रेरणादायक दोहा हमें हर काम सोच समझकर करने के लिए प्रेरित करता है। इस दोहे में कबीर दास जी कहते हैं कि हे मनुष्य, जब तुम बिना सोचे समझे बुरे कार्यों को करता था, तो अब पछताने से क्या फायदा। जिस प्रकार यदि कोई बबूल (कांटेदार) का पेड़ बोता है तो उसे आम का फल पाने की उम्मीद नहीं करनी चाहिये, उसे तो कांटे ही मिलेंगे। बाद में पछताने से अच्छा है कि पहले ही परिणाम सोचकर काम किया जाये।
Karta tha so kyon kiya, ab kar kyon pachitaya।
Boya ped babool ka, aam kahan se khaya ॥
This inspirational couplet by Kabir Das encourages us to think carefully before doing any work. In this doha, Kabir Das says that if a person engages in bad deeds without thinking, then what’s the use of regretting later? Just as if someone sows a babool (thorny) tree, they should not expect to get mangoes from it; they will only get thorns. It’s better to consider the consequences before acting.
दुःख में सुमिरन सब करे सुख में करै न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे दुःख काहे को होय ॥
इस प्रेरणादायक दोहे में कबीर दास जी कहते हैं कि दुःख अथवा संकट के समय सभी भगवान को स्मरण करते हैं। किन्तु जब समय अच्छा चलता है अर्थात सुख के समय सभी भगवान को याद करना भूल जाते हैं। कबीर दास जी बोलते हैं की यदि मनुष्य सुख के समय भी भगवान को याद करे तो उसे दुःख होगा ही क्यों?अर्थात भगवत कृपा से उसपर आने वाला सारा दुःख और संकट पहले हो समाप्त हो जाएगा। इसलिए हमें हर समय सुख हो या दुःख भगवान् को याद करना चाहिए।
Dukh mein sumiran sab kare sukh mein karai na koy।
Jo sukh mein sumiran kare dukh kaahe ko hoy॥
In this inspirational doha, Kabir Das ji says that during times of sorrow or adversity, everyone remembers God. However, when times are good, meaning during times of happiness, they forget to remember God. Kabir Das ji states that if a person remembers God even during times of happiness, why would they experience sorrow? That is, through the grace of the Divine, all the sorrows and adversities that are destined for them will be resolved beforehand. Therefore, whether in times of joy or sorrow, we should always remember God.
मन के हारे हार है मन के जीते जीत ।
कहे कबीर हरि पाइए मन ही की परतीत ॥
कबीर दास जी के इस प्रसिद्ध दोहे का अर्थ है कि मनुष्य की जय और पराजय अर्थात हार और जीत उसके मन के भाव यानि मनोबल पर निर्भर करती है। जिस मनुष्य का मनोबल ऊँचा रहता है उसकी हमेशा जीत होती है और जिस व्यक्ति का मनोबल कम या दुर्बल होता है, उसकी जीत की संभावना क्षीण हो जाती है। कबीर दास जी कहते हैं कि यदि मनुष्य ठान ले और दृढ़ निश्चय कर ले तो वह हरी अर्थात परमात्मा को भी प्राप्त कर सकता है। इसलिए हमेशा अपना मनोबल ऊँचा रखना चाहिए।
Mann ke haare haar hai, mann ke jeete jeet।
Kahe Kabir hari paaiye, manm hi ki parateet॥
The famous couplet by Kabir Das ji means that victory and defeat, or success and failure in a person’s life depend on their mental strength, that is, their determination and morale. A person with high mental strength always achieves victory, whereas someone with low or weak mental strength finds their chances of success diminished. Kabir Das ji advises that if a person remains determined and firm in their resolve, they can achieve victory, even attaining the divine (Paramatma). Therefore, one should always strive to keep their morale high.
जब तू आया जगत में, लोग हँसे तू रोय ।
ऐसी करनी ना करो, पीछे हँसे सब कोय ॥
कबीर दास जी के इस प्रसिद्ध दोहे में कहते हैं कि जब तुम इस संसार में आये थे तो रो रहे थे और सब हंस रहे थे। इसका तात्पर्य है की जब कोई बच्चा पैदा होता है तो वह रोता है और उसके सगे सम्बन्धी खुशियां मानते हैं और खुश होते हैं। हे मनुष्य! तुम्हे ऐसा कोई काम नहीं करना जिससे तुम्हारे इस संसार से जाने के बाद भी लोग तुम पर हँसे यानि तुम्हार मज़ाक उड़ाएं ! कबीर दास का तात्पर्य है की हमे इस संसार में इतने अच्छे काम करने चाहिए कि हमारे पीछे लोग हमे याद करें और हमारी अनुपस्थिति के लिए दुखी हों।
Jab tu aaya jagat mein, log hanse tu roy।
Aisi karni na karo, peeche hanse sab koy॥
In this famous couplet, Kabir Das Ji says that when you came into this world, you were crying, and everyone else was laughing. This means that when a child is born, he cries, and his relatives celebrate and are happy. Oh, human! You should not do anything that makes people laugh at you, mock you, or ridicule you after you leave this world. Kabir Das implies that we should do such good deeds in this world that people remember us and feel sorrowful in our absence.
कबीर हमारा कोई नहीं हम काहू के नाहिं ।
पारै पहुंचे नाव ज्यौं मिलिके बिछुरी जाहिं ॥
इस प्रेरणादायक दोहे में कबीर दास कहते हैं कि इस संसार में हे मनुष्य ना कोई हमारा है और ना ही हम किसी के हैं अर्थात इस जगत में कोई किसी का नहीं है। जिस तरह किसी नाव के नदी के किनारे पहुँचने पर उसमे बैठे सभी यात्री उतर जाते हैं और अपने -अपने गंतव्य को निकल जाते हैं। कबीर का तात्पर्य है कि इस संसार में बने सारे संबंध इसी जग में छूट जाने वाले हैं।
Kabir hamaara koi nahin hum kaahu ke naahin ।
Paarai pahunche naav jyon milike bichhuri jaahin॥
Kabir Das says in this inspirational couplet that in this world, neither do we belong to anyone, nor does anyone belong to us. It means that in this universe, no one truly belongs to anyone else. Just like travelers disembark from a boat on reaching the shore and each goes their own way to their destination. Kabir’s intention is that all relationships formed in this world will eventually dissolve here.