महिला सशक्तिकरण पर निबंध | महिला सशक्तिकरण पर निबंध हिंदी में | Essay on Women Empowerment in Hindi | Women Empowerment Essay in Hindi | What is Women’s Empowerment in Hindi
महिला सशक्तिकरण पर निबंध (Essay on Women Empowerment in Hindi): महिला सशक्तिकरण एक महत्वपूर्ण विषय है जिसका महत्व समाज में महिलाओं के समान अधिकार, सुरक्षा, आत्मनिर्भरता और समाज में उनकी प्रतिभा को पहचानने में होता है। यह एक प्रशासनिक, सामाजिक और आर्थिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है और समाज के सभी क्षेत्रों में महिलाओं को एक बराबरी का समान अवसर मिलना चाहिए। महिला सशक्तिकरण के माध्यम से महिलाएं स्वयं को शिक्षित और स्वावलम्बी बना सकती हैं। यह महिलाओं को आत्मविश्वास और स्वानुभव की भावना प्रदान करता है, जिससे वे अपने लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए कठिनाइयों का सामना कर सकती हैं। आज हम महिला अर्थात नारी सशक्तिकरण पर निबंध लिखेंगे। इस निबंध की सहायता से आप अनेक प्रश्नों जैसे महिला सशक्तिकरण पर निबंध कैसे लिखें? महिला सशक्तिकरण क्या है संक्षिप्त नोट लिखें? महिला सशक्तिकरण के लिए क्या करें? महिला सशक्तिकरण क्यों बनाया जाता है? भारत में महिला सशक्तिकरण का मुख्य बिंदु क्या है? आदि का उत्तर उचित प्रकार से दे पाएंगे। महिला सशक्तिकरण पर निबंध लिखने को विभिन्न कक्षाओं की परीक्षा में तोआता ही है इसके साथ ही अनेक प्रतियोगिताओं और महत्वपूर्ण प्रतियोगी परीक्षाओं तथा सरकारी नौकरी की परीक्षा में भी पूछा जाता है। चलिए शुरू करते हैं, Essay on Women Empowerment in Hindi!
प्रस्तावना
आज के समय में महिला सशक्तिकरण एक चर्चा का विषय है, खासतौर से पिछड़े और प्रगतिशील देशों में क्योंकि उन्हें इस बात का काफी बाद में ज्ञान हुआ कि बिना महिलाओं तरक्की और सशक्तिकरण के देश की तरक्की संभव नही है।
डॉक्टर ए. पी जे कलाम ने कहा था, “एक अच्छे राष्ट्र के निर्माण के लिए महिलाओं को सशक्त बनाना सबसे बड़ी शर्त है, जब महिलाएं सशक्त होती हैं, तो समाज के विकास और स्थिरता का आश्वासन दिया जाता है।”
महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण का अर्थ उनके आर्थिक फैसलों, आय, संपत्ति और दूसरे वस्तुओं की उपलब्धता से है, इन सुविधाओं को पाकर ही वह अपने सामाजिक स्तर को ऊंचा कर सकती हैं। भारत में महिलाओं को सशक्त बनाने के लिये सबसे पहले समाज में उनके अधिकारों और मूल्यों का हनन करने वाले उन सभी राक्षसी सोच को मारना जरुरी है, जैसे दहेज प्रथा, अशिक्षा, यौन हिंसा, असमानता, भ्रूण हत्या, महिलाओं के प्रति घरेलू हिंसा, बलात्कार, वैश्यावृति, मानव तस्करी और ऐसे ही दूसरे विषय।
महिला सशक्तीकरण क्या है?
समाज में उनके वास्तविक अधिकार को प्राप्त करने के लिए उन्हें सक्षम बनाना ही महिला सशक्तीकरण है। यह एक ऐसी ताकत है कि वह समाज और देश में बहुत कुछ बदल सकती है। महिला सशक्तीकरण को बेहद आसान शब्दों में परिभाषित किया जा सकता है “महिला अर्थात नारी को सभी संभव शक्तियाँ और अधिकार मिलना जो समाज ने पुरुषों को दिया गया है”। महिलाओं के सशक्त होने से वह अपने जीवन से जुड़े सभी फैसले स्वयं ले सकती है और परिवार और समाज में और अच्छे से योगदान दे सकती हैं।
भारत में महिला सशक्तिकरण
भारत में लैंगिक असमानता और पुरुष प्रधान समाज ने महिला सशक्तिकरण की जरूरत पैदा की है। महिलाओं को उनके परिवार और समाज द्वारा कई कारणों से दबाया गया। जिसमें हिंसा और परिवार और समाज में भेदभाव भी शामिल हैं। भारत ही नहीं बल्कि दूसरे देशों में भी ऐसा होता है। नए रिती-रिवाजों और परंपरा ने महिलाओं के लिये प्राचीन काल से चले आ रहे गलत और पुराने चलन को बदल दिया। भारतीय समाज में महिलाओं को सम्मान देने के लिये माँ, बहन, पुत्री या पत्नी के रूप में महिला देवियों को पूजने की परंपरा है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि केवल महिलाओं को पूजने से देश का विकास होगा। आज देश की आधी आबादी, यानी महिलाओं, का हर क्षेत्र में सशक्तिकरण किया जाना चाहिए, क्योंकि वे देश के विकास का आधार होंगे।
भारत अपनी “विविधता में एकता” की सोच के लिए विश्व प्रसिद्द है, जिसमें विभिन्न धर्मों और सम्प्रदायों को मानने वाले लोगों का समूह रहता है। हर धर्म में कुछ लोग महिलाओं को पर्दे के पीछे देखना पसंद करते हैं और वर्षों से महिलाओं के खिलाफ शारीरिक और मानसिक हिंसा को जारी रखते हैं। सती प्रथा, नगर वधु व्यवस्था, दहेज प्रथा, यौन हिंसा, घरेलू हिंसा, गर्भ में बच्चियों की हत्या, पर्दा प्रथा, कार्यस्थल पर यौन शोषण, बाल मजदूरी, बाल विवाह और देवदासी प्रथा सहित अन्य भेदभावपूर्ण परंपराएं प्राचीन भारतीय समाज में थीं। इस तरह की कुप्रथा पितृसत्तामक समाज और पुरुष श्रेष्ठता मनोग्रन्थि से प्रेरित है।
नारी के सामाजिक, राजनीतिक अधिकारों, जैसे काम करने की आजादी, शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार, पूरी तरह से वर्जित थे। खुले विचारों वाले लोगों और महान भारतीय महापुरुषों ने महिलाओं के खिलाफ भेदभावपूर्ण कार्यों के खिलाफ अपनी आवाज उठाई, जिससे कुछ बुरे चलन दूर हो गए। राजा राम मोहन रॉय की निरंतर कोशिशों से ही सती प्रथा को अंग्रेजों ने खत्म कर दिया। बाद में दूसरे भारतीय समाज सुधारकों, जैसे ईश्वर चंद्र विद्यासागर, आचार्य विनोभा भावे और स्वामी विवेकानंद ने भी महिलाओं के उत्थान के लिये कड़ा संघर्ष किया। भारत में विधवाओं की स्थिति को सुधारने के लिए ईश्वर चंद्र विद्यासागर ने विधवा पुर्न विवाह अधिनियम 1856 बनाया।
महिलाओं के खिलाफ होने वाले लैंगिक असमानता और बुरी प्रथाओं को दूर करने के लिए सरकार ने पिछले कुछ वर्षों में कई संवैधानिक और कानूनी अधिकार बनाए और लागू किए हैं। ऐसे बड़े मुद्दे को हल करने के लिये, हालांकि, महिलाओं सहित सभी का निरंतर सहयोग की जरूरत है। महिलाओं के अधिकारों को लेकर आजकल बहुत से स्वयंसेवी समूह और गैर सरकारी संस्थाएं काम कर रहे हैं। आज के समय में महिलाएँ अधिक स्वतंत्र हैं और सभी क्षेत्रों में अपने अधिकारों को पाने के लिये सामाजिक बंधनों को तोड़ रही हैं। हालाँकि अपराध भी जारी है और महिला सशक्तिकरण की राह अभी बहुत लम्बी है।
नारी के सशक्त होने का वास्तविक आशय
पूरे विश्व में 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है। सशक्त होने का अर्थ केवल घर से बाहर निकलकर काम करना या पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलना नहीं है। वास्तव में सशक्त होने का अर्थ है “स्वयं निर्णय लेने का अधिकार और आत्म निर्भरता”।
भारत में महिलाओं को आज भी सभी क्षेत्रों में समान अधिकारों के लिए संघर्ष करना पड़ता है। हमारे समाज में आज भी कई जगह पितृसत्तात्मक ढांचा देखने को मिलता है। आज भी शहरों और गांवों में खाप पंचायतें और ऐसी ही अन्य संस्थाएं हैं जो नारी के अधिकारों का हनन करती हैं। कभी उसके कपड़े पहनने पर, कभी उसके धर्म स्थलों में जाने में तो कभी सामाजिक व्यवहार को लेकर मोरल पुलिसिंग की सिफारिशें करते रहते हैं। धर्म-जाति, रूढ़िवाद और अंधविश्वास ने महिलाओं को और अधिक शोषित किया है।
इतिहास से आज तक, राजनीति पुरुषों के एकाधिकार का क्षेत्र रही है। महिलाओं का इस पर कभी एकाधिकार नहीं था। राजनीति घरेलू चारदिवारी से बाहर निकलकर समाज को दिशा देती है। विश्व भर में राजनीतिक पदों पर पुरुषों को ही देखा गया है। इससे भारतीय समाज भी अलग नहीं है। पुरुष प्रधान परंपरा प्रारंभिक काल से चली आ रही है। आज देश की लोकसभा में 542 में से केवल 78 महिला सांसद हैं, जबकि राज्यसभा में केवल 24 सांसद हैं। आज 28 राज्यों में सिर्फ एक महिला मुख्यमंत्री हैं। वर्तमान राष्ट्रपति इस पद पर दूसरी महिला हैं। भारत में प्रधानमंत्री को राष्ट्रपति से अधिक व्यावहारिक पद माना जाता है, और इस पद पर एकमात्र महिला का आगमन सब कुछ स्पष्ट करता है।
महिलाओं का आर्थिक विकास उनके पूरे भविष्य को प्रभावित करता है। हम पूरी तरह से आजाद हैं अगर हम स्वतंत्र निर्णय ले सकते हैं। महिलायें भारतीय समाज में काम करने के लिए बाहर नहीं जाती थीं, इसलिए उनके पास कोई आर्थिक स्वतंत्रता नहीं थी। वे धन के लिए अपने घर के पिता, भाई, पति या पुत्र पर निर्भर रहती थीं। आज ये हालात बदल गए हैं, महिलायें घरों से बाहर निकली हैं, पढ़ लिख कर नौकरी या व्यापार कर रही हैं। उन्हें सरकारी और निजी क्षेत्रों में समान वेतन मिलता है, लेकिन निजी क्षेत्रों में अक्सर भेदभाव का सामना करना पड़ता है।
आधुनिक काल में स्थिति को सुधारने का प्रयास फिर से शुरू हुआ। महिलाओं ने अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करके कई नए अवसर खोले। अब भी इनके साथ सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक रूप से समानता का व्यवहार किया जाना बाकी है, जो इस सभ्य समाज में उनका हक़ है। महिलाओं के पास अभी भी बहुत सारी संभावनाएं हैं, जो सिर्फ उनके निरंतर सशक्त होते रहने से खुल सकती हैं।
भारत में महिला सशक्तिकरण के लिए सरकार की भूमिका
भारत सरकार द्वारा महिला सशक्तिकरण के लिए कई सारी योजनाएं चलायी जाती है। इन्हीं में से कुछ मुख्य महिला सशक्तिकरण योजनाओं के विषय में नीचे बताया गया है।
1) बेटी बचाओं बेटी पढ़ाओं योजना
2) महिला हेल्पलाइन योजना
3) उज्जवला योजना
4) सपोर्ट टू ट्रेनिंग एंड एम्प्लॉयमेंट प्रोग्राम फॉर वूमेन (स्टेप)
5) महिला शक्ति केंद्र
6) पंचायती राज योजनाओं में महिलाओं के लिए आरक्षण
भारत का महिला आरक्षण बिल
किसी भी देश को चलाने के लिए सभी महत्वपूर्ण फैसले उसकी संसद में ही लिए जाते हैं। हमारी संसद में महिला सांसदों की संख्या कम है। महिलाओं की भूमिका देश को चलाने में बहुत कम है। इसी कारणवश 2010 में भारत सरकार ने संसद में महिलाओं की कमी को देखते हुए महिला आरक्षण बिल का प्रस्ताव रखा। इस बिल में महिलाओं को संसद की 33 प्रतिशत सीटें देने का प्रस्ताव था। लेकिन उस समय कांग्रेस सरकार केवल राज्यसभा से ही इस बिल को पास कर पाई थी। इस बिल को लोकसभा में पूर्ण बहुमत नहीं मिला, इसलिए इसे पास नहीं किया जा सका।
वहीं साल 1993 में भारत सरकार ने एक संवैधानिक संशोधन पारित किया गया था। जिसमें ग्रामीण परिषद स्तर के होने वाले चुनावों में एक तिहाई सीटे महिलाओं के लिए आरक्षित थी। जिसकी वजह से आज हर गांव में होने वाले चुनाव में महिला चुनाव लड़ती हैं।
निष्कर्ष
आपने महिला आयोग और सहायता के लिए कई संस्थाओं के बारे में सुना होगा। लेकिन आपने पुरुषों के लिए किसी संगठन के बारे में सुना है? जो उनकी सहायता के लिए बनाया गया है। महिलाओं को लक्षित संगठनों की आखिर हमें क्यों आवश्यकता है? हमारे देश की महिलाओं में इतनी शक्ति नहीं है कि वे हर बात का सामना कर सके?
वहीं हमारे देश की स्त्रियां शिक्षित होंगी। अब हम कह सकते हैं कि हमारे देश में महिलाओं की स्थिति सुधर रही है। जिस तरह पुरुषों को किसी भी तरह की मदद की जरूरत नहीं है। ठीक उसी तरह, एक दिन आएगा जब महिलाओं को किसी भी समस्या का हल निकालने के लिए किसी दूसरे पर निर्भर नहीं रहना होगा और वह दिन आएगा जब महिलाओं को सशक्त बनाने का सपना सच हो सकेगा।
यह भी पढ़े: आतंकवाद पर निबंध: Essay on Terrorism in Hindi
महिला सशक्तिकरण पर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
-
महिला सशक्तिकरण का एक वाक्य में क्या अर्थ होता है?
किसी भी महिला का पारिवारिक और सामाजिक प्रतिबंध के बिना खुद से निर्णय लेने की स्वन्त्रता, महिला सशक्तिकरण कहलाता है।
-
महिला को सशक्त बनाने का सबसे मुख्य स्रोत क्या होता है?
शिक्षा, महिला सशक्तिकरण का सबसे मुख्य स्रोत है।
-
विश्व के किस देश की महिलाओं को सबसे सशक्त माना जाता है?
डेनमार्क
-
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस कब मनाया जाता है?
8 मार्च